रविवार, 13 सितंबर 2009

आखिर क्यों करे इन बुजुर्गों का सम्मान?

सप्ताह का आखिरी दिन मेरे लिए कुछ खास होता है। इस दिन मेरी छुट्टी होती है और अपने मन-मुताबिक मैं अपनी दिनचर्या तय करता हूं। दिन का ज्यादातर समय अपने इष्ट-मित्र से मिलने में बीतता है और मुमकिन हुआ तो रात भी किसी दोस्त के घर पर ही गुजरती है।

खैर, इस शनिवार भी अपने एक मित्र से मिलने मैं घर से निकल पड़ा। दो दिनों से लगातार बारिश होने से मौसम सुहावना था, इसलिए छुट्टी का भरपुर लुत्फ उठाने के लिए मैं तैयार था। मित्र से मिलने का स्थान गोलचक्कर तय हुआ, इसलिए मैं उधर जा रहे एक ऑटो में सवार हो गया। ऑटो में तीन और सहयात्री मेरे साथ थे। अभी हमने थोड़ी दूरी ही तय की थी कि एक बुर्जुग भी उसी ऑटो में सवार हुए। उनके हाथ में एक बुझी हुई सिगरेट थी। अभी तक सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन चंद मिनटों के बाद ही उन्होंने अपनी बुझी हुई सिगरेट सुलगा ली। चुकि वे किनारे की सीट पर थे, इसलिए उनके सिगरेट से निकल रहा धुंआ मेरी तरफ आ रहा था। मुझे धुओं से एलर्जी है। मैंने उनसे ससस्मान गुजारिश की कि वह सिगरेट बुझा लें, या मेरे उतरने के बाद अपनी तलब पूरी कर लें। मेरे इतना कहते ही वह छुटते हुए बोले, 'कहां जा रहे हो?'

मैंने कहा, 'गोलचक्कर'

'वह तो बहुत दूर है, तो क्या मैं इतनी देर सिगरेट न पीऊं। तेरे को दिक्कत हो रही है, तो उतर जा।'
उनका यह जवाब सुनकर मैं भौंचक रह गया। ऐसी अपेक्षा मैंने नहीं की थी।


यह इस फलसफे का पहला सीन था। मेरा सवाल है कि आखिर हम ऐसे बुजुर्गों की इज्जत क्यों करें? इन्हें हम 'अंकल-अंकल' कहकर क्यों संबोधित करे? लेकिन हम ऐसा करते हैं क्योंकि हमें जन्म के साथ ही यह घुट्टी पिला दी जाती है कि जो भी बुजुर्ग मिलें, उनका आदर करो। लेकिन क्या ऐसे बुजुर्ग आदर के लायक हैं? अगर इनके बेटे और बेटियां सिगरेट या अल्कोहल पीकर घर आती हैं, तो ये हाय-तौबा मचाते हैं। कहते हैं बेटा बिगड़ गया। लेकिन बेटे के बिगड़ऩे की राह किसने तैयार की? क्या इनके बेटे का गुणसूत्र इनसे अलग है। तो आखिर वह क्यों नहीं सिगरेट पीयें या भी कोई अन्य नशा करे? मेरा ख्याल है कि ऐसे ही बुजुर्ग यह कहते हुए पाए जाते हैं कि इनका अपना ही बेगाना हो गया और इन्हें बेआबरु होकर घर से निकाल दिया गया है।


हालांकि मैं बेटे की इस करतूत को सही नहीं ठहरा रहा, लेकिन ऐसे मामलों में हमेशा दोषी औलाद ही क्यों हो? सिक्के का दूसरा पहलू यह भी तो हो सकता है।


ऐसे बुजुर्गों पर आपकी क्या राय है?

7 टिप्‍पणियां:

hempandey ने कहा…

बुजुर्ग के जिस व्यवहार का जिक्र आपने किया है, वह निश्चित रूप से आपत्तिजनक है.किसी का भी असभ्य व्यवहार क्षम्य नहीं. लेकिन बुजुर्गों की कुछ गलतियाँ बच्चों की ही तरह क्षमा की जानी चाहिए.

bhawna ने कहा…

hem ji se sahmat hoon......

समय चक्र ने कहा…

रोचक अभिव्यक्ति ..

Narendra Rajput ने कहा…

मैं तो किसी बुड्ढे की इज्ज़त नहीं करता. साले हरामी नंबर एक होते है, साले कब्र में पाँव लटके हैं पर सुरा-सुन्दरी और लालच इनसे छुटता नहीं. मेरा बस चले तो लातें मारूं सालों को. इनकी बुढापे की तकलीफें इनकी जवानी के कुकर्मों का नतीजा हैं, अब किसी को भला लगे या बुरा पर सच यही है की अपनी हालत के लिए बुड्ढे खुद जिम्मेदार हैं.

हेमेन्द्र मिश्र ने कहा…

नरेंद्र भाई बुरा न माने एक दिन आप भी उम्र के उस पड़ाव पर पहुंचेंगे, जिसको जूते मारने की बात आप कह रहे हैं। सब धान बाइस पसेरी नहीं होते और न ही सभी अंगुलियां एक समान। इसलिए संयम रखे। कुछ लोग ऐसे होते हैं, और निश्चय ही उनका समाज में कोई मान-सम्मान नहीं होता होगा- ऐसा मेरा मानना है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

गुण/अवगुण प्रत्येक इन्सान में होते है...चाहे वो बालक,युवा अथवा वृ्द्ध्। आपके साथ उस व्यक्ति नें जो भी व्यवहार किया,उसके लिए उसकी उम्र को दोषी ठहराना मैं उचित नहीं समझता। अब यदि कोई बालक हमारे सामने अपनी अशिष्टता का परिचय दे तो उसके इस कृ्त्य के कारण हमारे मन से अन्य बालकों के प्रति स्नेहभावना तो समाप्त नहीं हो जाएगी। कृ्प्या विचार कीजिए कि कहीं आपकी पोस्ट का शीर्षक युवाओं को एक गलत संदेश तो नहीं दे रहा है।

(मैं विस्मित हूँ कि आपने एक बेनामी व्यक्ति की इतनी अभद्र टिप्पणी को ऎसे सहेजकर क्यूं रखा हुआ है।)

हेमेन्द्र मिश्र ने कहा…

वत्स सर, आपने ठीक कहा लेकिन मेरी शिकायत सभी बुजुर्गों से नहीं है। मेरे घर में भी बुजुर्ग हैं और मैं जानता हूं कि उनका स्वभाव बच्चों के प्रति कितना आत्मीय होता है। लेकिन जिनका मैंने अपने आलेख में जिक्र किया है, वे भी उन्ही का एक हिस्सा हैं। मेरी शिकायत वैसे कौम से है, या यूं कहे तो ऐसे खुसट बुजुर्गों से। और, जहां तक बेनामी टिप्पणी का सवाल है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को प्राप्त है। मैं भी उनसे सहमत नहीं हूं और उनके नीचे दर्ज मेरी टिप्पणी शायद आपने पढ़ी ही होगी?