शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

एक विवाह ऐसा भी...


क्या आप वर-वधु को आशीर्वाद देना पसंद करेंगे?

बुधवार, 8 सितंबर 2010

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा...

मीना कुमारी को जानने वाले 'क्वीन ऑफ ट्रेजडी' कहते थे क्योंकि वह अपने असल जीवन का दुख ही रूपहले परदे पर जीती थी। उनकी गजलों में भी यह दर्द दिखता है। आज की पोस्ट मीना कुमारी को श्रद्धांजलि।


चांद तन्हा है, आस्मां तन्हा
दिल मिला है, कहां-कहां तन्हा


बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा


जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा

हमसफर कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहें यहां तन्हा

जलती-बुझती-सी रौशनी के परे
सिमटा-सिमटा-सा इक मकां तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तन्हा
(साभार- मीना कुमारी की शायरी, लेखक - गुलजार, हिंद पॉकेट बुक्स, दिल्ली )

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

मौत पर टैक्स ?

एक अनुमान के मुताबिक, हम जितना टैक्स भरते हैं उसका महज २० फीसदी ही विकास कार्यों पर खर्च होता है। शेष रकम नौकरशाहों और सरकारी नुमांइदों के ऊपर हुकूमत खर्च करती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम इतने अराजक हो गए हैं कि हमें संभालने के लिए एक 'मजबूत' तंत्र का होना काफी जरूरी है!
बहरहाल, यह पोस्ट एक मेल है, जो इंटरनेट की दुनिया में घूमते हुए मेरे पास पहुंचा है। प्रश्नोत्तर की शैली में यह मेल हमें काफी दिलचस्प जानकारी दे रहा है। आखिर कहां-कहां हम टैक्स चुका रहें हैं। इस मेल के आखिरी प्रश्न पर जरूर विचार करें। शायद कुछ ऐसा टैक्स हमें न चुकाना पड़े...


Question 1.. : What are you doing?
Ans. : Business.
Tax : PAY PROFESSIONAL TAX!


Question 2 : What are you doing in Business?
Ans. : Selling the Goods.
Tax : PAY SALES TAX!!


Question 3 : From where are you getting Goods?
Ans. : From other State/Abroad
Tax : PAY CENTRAL SALES TAX, CUSTOM DUTY & OCTROI


Question 4 : What are you getting in Selling Goods?
Ans. : Profit.
Tax : PAY INCOME TAX!


Question 5: How do you distribute profit ?
Ans : By way of dividend
Tax : PAY DIVIDEND DISTRIBUTION TAX


Question 6 : Where you Manufacturing the Goods?
Ans. : Factory...
Tax : PAY EXCISE DUTY!


Question 7 : Do you have Office / Warehouse / Factory?
Ans. : Yes
Tax : PAY MUNICIPAL & FIRE TAX!


Question 8 : Do you have Staff?
Ans. : Yes
Tax : PAY STAFF PROFESSIONAL TAX!


Question 9 : Doing business in Millions?
Ans. : Yes-- Tax : PAY TURNOVER TAX!
Ans : No -- Tax : Then pay Minimum Alternate Tax


Question 10 : Are you taking out over 25,000 Cash from Bank?
Ans. : Yes, for Salary.
Tax : PAY CASH HANDLING TAX!

Question 11 : Where are you taking your client for Lunch & Dinner?
Ans. : Hotel
Tax : PAY FOOD & ENTERTAINMENT TAX!


Question 12 : Are you going Out of Station for Business?
Ans. : Yes
Tax : PAY FRINGE BENEFIT TAX!


Question 13 : Have you taken or given any Service / (s)?
Ans. : Yes
Tax : PAY SERVICE TAX!


Question 14 : How come you got such a Big Amount?
Ans... : Gift on birthday.
Tax : PAY GIFT TAX!


Question 15.: Do you have any Wealth?
Ans. : Yes
Tax : PAY WEALTH TAX!


Question 16 : To reduce Tension, for entertainment, where are you going?
Ans. : Cinema or Resort.
Tax : PAY ENTERTAINMENT TAX!


Question 17 : Have you purchased House?
Ans. : Yes
Tax : PAY STAMP DUTY & REGISTRATION FEE !


Question 18 : How you Travel?
Ans. : Bus
Tax : PAY SURCHARGE!


Question 19.: Any Additional Tax?
Ans. : Yes
Tax : PAY EDUCATIONAL, ADDITIONAL EDUCATIONAL & SURCHARGE ON ALL THE CENTRAL GOVT.'s TAX !!!


Question 20: Delayed any time Paying Any Tax?
Ans. : Yes
Tax : PAY INTEREST & PENALTY!


21) INDIAN : Can I die now??
Ans :: Wait we are about to launch the funeral tax !!!

रविवार, 6 दिसंबर 2009

एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश!

क्या राजनीति की बिसात पर किसी ऐतिहासिक स्थल की कुर्बानी देनी सही है? नहीं, लेकिन बाबरी विध्वंस की घटना भारतीय राजनीति का वह काला अध्याय है, जिसमें संकीर्ण मानसिकता की वेदी पर एक ऐतिहासिक इमारत की आहूति दे दी गई। महज भगवान श्रीराम का जन्मस्थल होने की वजह से बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया था। लेकिन उसे तोडऩे वाले लोग ही मर्यादा पुरुषोत्तम की नीति को भूल गए। श्रीराम के राज्य में सभी धर्मों के लोग एक साथ रहा करते थे और उनमें राग या द्वेष की कोई भावना नहीं थी, लेकिन विडंबना रही कि उनके पदचिन्हों का अनुसरण करने का दावा करने वाले उनके कथित भक्त ही धर्मों के आधार पर एक-दूसरे से झगडऩे लगे। आज तो न सिर्फ राम मंदिर के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकी जा रही है, बल्कि लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट के आधार पर राजनीतिक दल एक-दूसरे आरोप-प्रत्यारोप भी कर रहे हैं, लेकिन इस राजनीतिक घपलेबाजी में कोई भी सच्चा हिंदुस्तानी शायद ही इस बात से इंकार करेगा कि एक ऐतिहासिक इमारत को महज राजनीतिक कैरियर चमकाने के लिए विवादित बना दी गई है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि सहअस्तित्व ही भारतीयों की बुनियाद रही है और क्षुद्र राजनीति के लिए इस बुनियाद की नींव कमजोर नहीं की जा सकती। वैसे भी, अगर भविष्य में वहां राम मंदिर बन भी गया, तो भी क्या बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को भुलाना आसान होगा?

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

मोहल्ला लाइव का सवाल और मेरा विचार : हम कब बोलेंगे ?

poll mohalla live

कोई हमारी गलतियां गिनाये और यथार्थ का आईना दिखाये, तो क्या हम उद्वेलित नहीं होते ? जब पड़ोसी हमसे कहता है कि मेरे घर का कचरा उसके मकान के सामने फैंका गया है, तो सही होने पर भी क्या हम उसे स्वीकारते हैं, उससे नहीं झगड़ते? जब कोई हम पर झूठा होने का तोहमत लगाता है, तो क्या हम उससे दो-दो हाथ करने को तैयार नहीं होते? तो, फिर आज हम क्यों खामोश हैं।

मोहल्ला लाइव का कल का प्रश्न हमारी खामोशी को टटोल रहा है। हमें तनिक भी बैचेनी नहीं हुई कि कोई हमें यह बता रहा है कि भोपाल गैस कांड के 25 वर्ष बीतने पर भी हम खामोश हैं। आखिर क्यों? सचाई का आईना देखने के बाद भी क्यों हमें ग़ुस्सा नहीं आया। शायद इसलिए, क्योंकि हम इससे जुड़े हुए नहीं हैं या फिर चुप रहने की हमारी आदत हो गयी है।

अमूमन ऐसा माना जाता है कि समाज में मूलत: दो तरह के लोग ही होते हैं। एक वे, जो जुल्म का विरोध करते हैं और दूसरे वे, जिन्हें दमन को चुपचाप सहना ज़्यादा मुफीद लगता है। लेकिन हाल के वर्षों में एक ऐसा वर्ग भी उभरा है, जो तब तक उद्वेलित नहीं होता, जब तक उसका अपना क़रीबी किसी हादसे का शिकार नहीं होता। यही कारण है कि यूनियन कार्बाइड की चपेट में आकर असमय मौत का शिकार बने सैकड़ों निदोर्षों की मौत की 25वीं बरसी पर भी हमें शांत रहना ज़्यादा अच्छा लगा, क्योंकि उसमें हमारे अपने नहीं थे।

आज के परिप्रेक्ष्य में यह कहना शायद ग़लत होगा कि क्रांति बंदूक की नली से निकलती है। लेकिन यह भी सही है कि समाज में आज भी बहरों की कमी नहीं और उन्हें सुनाने के लिए घमाके ज़रूरी हैं। कई ऐसे आंदोलन हमारे आस-पास शांतिप्रिय ढंग से अपनी गति में चलते दिख रहे हैं, लेकिन उन्हें पोषित करने या उनके साथ खड़े होने की हमने कभी ज़रूरत नहीं समझी। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे नर्मदा बांध से विस्थापित लोगों को क्या अभी तक सफलता मिल पायी है? इरोम शर्मिला अभी तक अनशन पर बैठी हैं। अपवादों को छोड़ दें, तो मात्र वही व्यक्ति इस आंदोलन में मुखर होता है, जिसका कोई अपना इस तरह की त्रासदी का शिकार बनता है। ऐसे में देश के रणनीतिककारों पर दबाव बने, तो कैसे? हमारी चुप्पी उन्हें कैसे जगा पाएगी?

ऐसे में पास्‍तर नूमोलर की कविता First they came… बरबस याद हो आती है -

वे पहले यहूदियों को मारने आये,
और मैं चुप रहा
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वे साम्यवादियों को मारने आये
मैं फिर भी चुप रहा
क्योंकि मैं साम्यवादी नहीं था
वे श्रमिक संघों को मारने आये
मैं चुप रहा
क्योंकि मैं श्रमिकसंघी नहीं था
फिर वे मुझे मारने आये
और तब मेरे लिए बोलने वाला कोई नहीं रह गया था

क्या हम अभी भी अपनी बेबसी पर रोएंगे या खामोश रहेंगे या फिर मुखर विरोध कर सरकार की क्रूरता पर चीखेंगे? जवाब हमें अपने-आप में टटोलना होगा।

रविवार, 13 सितंबर 2009

आखिर क्यों करे इन बुजुर्गों का सम्मान?

सप्ताह का आखिरी दिन मेरे लिए कुछ खास होता है। इस दिन मेरी छुट्टी होती है और अपने मन-मुताबिक मैं अपनी दिनचर्या तय करता हूं। दिन का ज्यादातर समय अपने इष्ट-मित्र से मिलने में बीतता है और मुमकिन हुआ तो रात भी किसी दोस्त के घर पर ही गुजरती है।

खैर, इस शनिवार भी अपने एक मित्र से मिलने मैं घर से निकल पड़ा। दो दिनों से लगातार बारिश होने से मौसम सुहावना था, इसलिए छुट्टी का भरपुर लुत्फ उठाने के लिए मैं तैयार था। मित्र से मिलने का स्थान गोलचक्कर तय हुआ, इसलिए मैं उधर जा रहे एक ऑटो में सवार हो गया। ऑटो में तीन और सहयात्री मेरे साथ थे। अभी हमने थोड़ी दूरी ही तय की थी कि एक बुर्जुग भी उसी ऑटो में सवार हुए। उनके हाथ में एक बुझी हुई सिगरेट थी। अभी तक सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन चंद मिनटों के बाद ही उन्होंने अपनी बुझी हुई सिगरेट सुलगा ली। चुकि वे किनारे की सीट पर थे, इसलिए उनके सिगरेट से निकल रहा धुंआ मेरी तरफ आ रहा था। मुझे धुओं से एलर्जी है। मैंने उनसे ससस्मान गुजारिश की कि वह सिगरेट बुझा लें, या मेरे उतरने के बाद अपनी तलब पूरी कर लें। मेरे इतना कहते ही वह छुटते हुए बोले, 'कहां जा रहे हो?'

मैंने कहा, 'गोलचक्कर'

'वह तो बहुत दूर है, तो क्या मैं इतनी देर सिगरेट न पीऊं। तेरे को दिक्कत हो रही है, तो उतर जा।'
उनका यह जवाब सुनकर मैं भौंचक रह गया। ऐसी अपेक्षा मैंने नहीं की थी।


यह इस फलसफे का पहला सीन था। मेरा सवाल है कि आखिर हम ऐसे बुजुर्गों की इज्जत क्यों करें? इन्हें हम 'अंकल-अंकल' कहकर क्यों संबोधित करे? लेकिन हम ऐसा करते हैं क्योंकि हमें जन्म के साथ ही यह घुट्टी पिला दी जाती है कि जो भी बुजुर्ग मिलें, उनका आदर करो। लेकिन क्या ऐसे बुजुर्ग आदर के लायक हैं? अगर इनके बेटे और बेटियां सिगरेट या अल्कोहल पीकर घर आती हैं, तो ये हाय-तौबा मचाते हैं। कहते हैं बेटा बिगड़ गया। लेकिन बेटे के बिगड़ऩे की राह किसने तैयार की? क्या इनके बेटे का गुणसूत्र इनसे अलग है। तो आखिर वह क्यों नहीं सिगरेट पीयें या भी कोई अन्य नशा करे? मेरा ख्याल है कि ऐसे ही बुजुर्ग यह कहते हुए पाए जाते हैं कि इनका अपना ही बेगाना हो गया और इन्हें बेआबरु होकर घर से निकाल दिया गया है।


हालांकि मैं बेटे की इस करतूत को सही नहीं ठहरा रहा, लेकिन ऐसे मामलों में हमेशा दोषी औलाद ही क्यों हो? सिक्के का दूसरा पहलू यह भी तो हो सकता है।


ऐसे बुजुर्गों पर आपकी क्या राय है?