मंगलवार, 26 अगस्त 2008

जल या जहर

जीवन का मुख्य आधार जल अब जहर बनता जा रहा है । कुल भूभाग के ७५% भाग पर बहते इस मुख्य संसाधन के एक महत्वपूर्ण स्त्रोत भूजल में बढ़ रही फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा अगर अपनी रफ्तार से बढती रही तो शायद वह दिन दूर नही जब जल ही जीवन है की उक्ति जल ही जहर है कही जाने लगे ।आंकड़े बता रहे है की पूरे विश्व में रोजाना ४००० लोगो की मृत्यु प्रदुषित पानी से हो रही है । ठीक इसी तरह भारत में कुल मृत्यु के ७.५% मृत्यु का कारक जहरीला पानी ही है । विश्व स्वाथ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में २००७ में १६ लाख लोगो की मोत दुसित पानी के सेवन से हुई है । जबकि यह संख्या इस साल मई तक ७ लाख ८० हजार तक जा पहुंची है । रिपोर्ट कह रहे है की इन मोंतो के पीछे भूजल में बढ़ रही floride और आर्सेनिक की मात्रा है जो लगातार बढ़ रही है। देश में लगभग ६०० जिले है और इन में से तकरीबन २०० जिलो के चापाकल से लिए गए नमूने के पानी में floride और आर्सेनिक की मात्रा उचित सीमा से ज्यादा पाए गए है । सबसे ज्यादा आर्सेनिक तो पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में पाए गए है । अगर राज्यवार चर्चा करे तो सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य राजस्थान है जिसके ३२ जिले इसकी चपेट में है जबकि गुजरात के १८ जिले ,उडीसा के १७ जिले और बिहार के १२ जिलो की स्थिति लगातार बिगड़ रही है ।बहरहाल इस जहर को रोकने के प्रयास भी किए जा रहे है लेकिन सरकारी प्रक्रिया का जटिल जंजाल इसकी गति को धीमा कर रहा है। इसलिए स्वस्थ भविष्य के लिए हमें स्वयं इसका हल ढूँढना होगा ।वक्त है अब सामूहिक प्रयास का, जिसके अंतर्गत अब न सिर्फ़ भूजल को शुद्ध करने की जरुरत है बल्कि वर्षा जल को जमा कर और परिष्कृत कर उसका अधिक से अधिक उपयोग कैसे हो -इस पर भी व्यापक बहस की जाए तथा बेहतर वैज्ञानिक उपकरण खोजे जाए । इसके आलावा रिवर्स ओस्मोसिस की प्रक्रिया को शुरू कर भी इस संसाधन को जहर बनने से रोका जा सकता है ।