शनिवार, 24 जनवरी 2009
सुरमयी अंखियों में बसा संजय वन
रंग बिरंगे और सुगंधित,
फूलों से कुतंल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले,
शंख सरीखे सुधड़ गालों में ...
बाबा नागार्जुन की यह पंक्ति संजय वन के सौंदर्य को बखुबी परिभाषित करती है। संजय वन दिल्ली के महत्वपूर्ण वनों में एक है जहां की सुरमयी सुबह कई मामलों में अन्य वनों से अलग है।
यह वन करीब 626 हेक्टेयर में फैला है। पूरब में यह ऐतिहासिक कुतुब मीनार, पश्चिम में जेएनयू, उत्तर में कटवरिया सराय और दक्षिण में महरौली को छुता है।
दिल्ली के खुबसूरत वनों में एक संजय वन की सुबह मनोहारी होती है। गुलाबी ठंडक में विचरते मोरों का झुण्ड, नीलगायों की चहलकदमी, और खरगोशों की अठखेलियों को देखना आंखों को सकुन देता है। इन सबके बीच विभिन्न पक्षियों की स्वर लहरियां भी कानों में मधुर रस धोलती है।
अरावली पहाड़ी का क्षेत्र होने के कारण यह वन अपने में कई खुबसुरत पेड़ों और छोटे-छोटे पर्वतों को समेटे हुए है। यहां कींकर, टीटू जैसे पेड़ों की छाया तो मिलेगी ही साथ ही केला और अमरूद का स्वाद भी चखने को मिलेगा। कंकड़ीली पगडंडी पर इन मैदानी फलों को खाते हुए चलना ठीक वैसा ही अनुभव है जो अनुभव गन्ने के खेत में गन्ना चबाते हुए चलने में होता है। हां, अगर चलते-चलते आप थक जाएं तो आप इस वन के बीचोबीच बने पार्क में आराम भी कर सकते है। इस पार्क में न सिर्फ बड़ों के लिए आराम करने की जगह है बल्कि बच्चों के मनोरंजन के लिए तरह-तरह के झूले भी हैं।
यहां सुबह-शाम धुमने आने वाले लोगों की कमी नहीं। इनकी तादाद लगातार बढ़ ही रही है। क्या कारण है कि यहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है? जवाब राज कुमार टोकस देते हैं। ये नियमित यहां धुमने आते है और कटवरिया सराय में फूलों का व्यवसाय चलाते हैं। इनका कहना है कि यहां लोगों के आने का मुख्य कारण वन की खुबसूरत प्राकृतिक छटा तो है ही साथ ही इस वन क्षेत्र में स्थापित गोरक्षनाथ मंदिर भी है जो स्थानीय निवासियों के आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है। इस मंदिर में मेला का भी आयोजन होता है। अक्टूबर में होने वाले इस मेले में गुरू गोरक्षनाथ के सैंकड़ों भक्त भाग लेते है। लेकिन श्री टोकस की राय से उनके मित्र श्याम सिंह तंवर सहमत नहीं हैं। तंवर, जो मार्बल का व्यापार करते हैं, कहते हैं कि शहर में काफी शोर-शराबा है और हर व्यक्ति तनाव में जीता दिखता है। इस भागमभग भरी जीवनशेली में इन जंगलों में ही आराम मिलता है। हंसकर सलाह की मुद्रा में श्री तंवर कहते हैं कि असल में पेड़-पौधों की गोद में ही मनुष्य शान्ति से जी सकता ।
बहरहाल अपनी खुबसुरती से लोगों को लुभाने वाले इस वन के देखरेख का जिम्मा दिल्ली विकास प्राधिकरण के पास है। यह लगातार यहां विकास कार्यों को कर रहा है।
फूलों से कुतंल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले,
शंख सरीखे सुधड़ गालों में ...
बाबा नागार्जुन की यह पंक्ति संजय वन के सौंदर्य को बखुबी परिभाषित करती है। संजय वन दिल्ली के महत्वपूर्ण वनों में एक है जहां की सुरमयी सुबह कई मामलों में अन्य वनों से अलग है।
यह वन करीब 626 हेक्टेयर में फैला है। पूरब में यह ऐतिहासिक कुतुब मीनार, पश्चिम में जेएनयू, उत्तर में कटवरिया सराय और दक्षिण में महरौली को छुता है।
दिल्ली के खुबसूरत वनों में एक संजय वन की सुबह मनोहारी होती है। गुलाबी ठंडक में विचरते मोरों का झुण्ड, नीलगायों की चहलकदमी, और खरगोशों की अठखेलियों को देखना आंखों को सकुन देता है। इन सबके बीच विभिन्न पक्षियों की स्वर लहरियां भी कानों में मधुर रस धोलती है।
अरावली पहाड़ी का क्षेत्र होने के कारण यह वन अपने में कई खुबसुरत पेड़ों और छोटे-छोटे पर्वतों को समेटे हुए है। यहां कींकर, टीटू जैसे पेड़ों की छाया तो मिलेगी ही साथ ही केला और अमरूद का स्वाद भी चखने को मिलेगा। कंकड़ीली पगडंडी पर इन मैदानी फलों को खाते हुए चलना ठीक वैसा ही अनुभव है जो अनुभव गन्ने के खेत में गन्ना चबाते हुए चलने में होता है। हां, अगर चलते-चलते आप थक जाएं तो आप इस वन के बीचोबीच बने पार्क में आराम भी कर सकते है। इस पार्क में न सिर्फ बड़ों के लिए आराम करने की जगह है बल्कि बच्चों के मनोरंजन के लिए तरह-तरह के झूले भी हैं।
यहां सुबह-शाम धुमने आने वाले लोगों की कमी नहीं। इनकी तादाद लगातार बढ़ ही रही है। क्या कारण है कि यहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है? जवाब राज कुमार टोकस देते हैं। ये नियमित यहां धुमने आते है और कटवरिया सराय में फूलों का व्यवसाय चलाते हैं। इनका कहना है कि यहां लोगों के आने का मुख्य कारण वन की खुबसूरत प्राकृतिक छटा तो है ही साथ ही इस वन क्षेत्र में स्थापित गोरक्षनाथ मंदिर भी है जो स्थानीय निवासियों के आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है। इस मंदिर में मेला का भी आयोजन होता है। अक्टूबर में होने वाले इस मेले में गुरू गोरक्षनाथ के सैंकड़ों भक्त भाग लेते है। लेकिन श्री टोकस की राय से उनके मित्र श्याम सिंह तंवर सहमत नहीं हैं। तंवर, जो मार्बल का व्यापार करते हैं, कहते हैं कि शहर में काफी शोर-शराबा है और हर व्यक्ति तनाव में जीता दिखता है। इस भागमभग भरी जीवनशेली में इन जंगलों में ही आराम मिलता है। हंसकर सलाह की मुद्रा में श्री तंवर कहते हैं कि असल में पेड़-पौधों की गोद में ही मनुष्य शान्ति से जी सकता ।
बहरहाल अपनी खुबसुरती से लोगों को लुभाने वाले इस वन के देखरेख का जिम्मा दिल्ली विकास प्राधिकरण के पास है। यह लगातार यहां विकास कार्यों को कर रहा है।
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